छत्तीसगढ़ी भाषा ल पहचान देवाबोन : दयाल दास बघेल

फोटो साभार : विवेक तिवारी
फोटो साभार : विवेक तिवारी

छत्तीगसढ़ी राजभाषा आयोग के स्थापना दिवस म महंत घासीदास संग्रहालय के सभागार म आयोजित कार्यक्रम के माई पहुना संस्कृति, पर्यटन एवं सहकारित मंत्री दयाल दास बघेल ह समारोह म कहिन के छत्तीसगढ़ी भाषा ल आठवां अनुसूची म सामिल करे बर सरलग उदीम करे जात हे। मंत्री दयाल दास बघेल ह कहिन के छत्तीसगढ़ी ल आठवां अनुसूची म सामिल कराबोन। मुख्यमंत्री मेर ये बारे म चर्चा करके प्रदेश के सांसद मन ल लोकसभा म ये विषय ल जोर-सोर से उठाये बर कहिबोन। येकर ले छत्तीसगढ़ी भाषा ल आठवां अनुसूची में सामिल करे म खच्चित सफलता मिलही। बघेल ह प्रदेश के साहित्यकार, लेखक मन ले घलव सहयोग करे के अपील करत ये दिसा म छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के उदीम के बड़ई करिन। उमन कहिन के छत्तीसगढ़ी भाषा बोले म हमला गर्व के अनुभूति होना चाहिये तभे हम येकर सम्मान ल कायम राख पाबों। उमन बताईन के छत्तीसगढ़ी भाषा ल पहचान दिलाये के खातिर जउन हो सकही उमन मदद करहीं।

छत्तीसगढ़ी ल राजभाषा के दर्जा देहे गए हे, फेर अभी तक ये राजकाज के भाषा नइ बन पाये हे। येकर बर चेतना जगाये के उदीम करे जावत हे। ये बात छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के अध्यक्ष डॉ. विनय कुमार पाठक ह कहिन। राजभाषा आयोग के अध्यक्ष डॉ. पाठक ह कहिन के छत्तीसगढ़ी ल आठवां अनुसूची म सामिल करना चाहिए। उमन कहिन के भाषा बर लोगन मन ल सचेत करे खातिर 28 नवंबर के दिन छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस मनाये जाथे। उमन बताईन के बिलासपुर विश्वविद्यालय अउ डॉ. सीवी रमन विश्वविद्यालय म छत्तीसगढ़ी शोध पीठ के घोषणा गए हे। संगें-संग स्कूल कॉलेज अउ विश्वविद्यालय म छत्तीसगढ़ी पाठयक्रम चालू करे जाही। पीएससी परीक्षा मन म घलव छत्तीसगढ़ के अर्थशास्त्र, दर्शन, इतिहास, संस्कृति संग सबे पक्‍छ ल सामिल करे जाही। साहित्यकार राघवेन्द्र दुबे ह कहिन के प्रदेश के चौमुखी विकास तभे संभव होही जब भाषा के विकास होही, राजभाषा आयोग ये दिशा म उदीम करत हे। येकरे ले हम सब के अधिकार सुरक्षित रहिही। हरिभूमि के प्रबंध संपादक हिमांशु द्विवेदी ह कहिन के छत्‍तीसगढ़ी पढ़ाये खातिर संविधान के नहीं फरमान के जरूरत हे। ये अवसर म पद्मश्री डॉ. महादेव पाण्डेय, विशेष वक्ता आईं बी सी 24 चैनल के संपादक  रविकान्त मित्तल, सुरजीत नवदीप, श्री गणेश सोनी, गणेश कौशिक, कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ मानसिंह परमार, छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के सचिव सुरेन्द्र दुबे, केयूर भूषण, दानेश्वर शर्मा के संग राजधानी के वरिष्ठ सहित्यकार अउ लेखक उपस्थित रहिन।

ये अवसर म डॉ.विमल पाठक के किताब ‘हांसव गावव गीत’, सेवाराम पाण्‍डेय के किताब ‘मोर गांव गंवा गे’, मकसूदन साहू के किताब ‘माटी के दियना’, सनत कुमार बघेल के किताब ‘नई क्रांति’, स्‍व.चंद्रिका प्रसाद मढ़रिया के किताब ‘महानदी के पार’, रमेश चौहान के किताब ‘दोहा के रंग’ कन्‍हैया मेश्राम के किताब ‘मनखे बनाओ’ अउ छत्रसाल गायकवाड़ के भजन संग्रह के सीडी के विमोचन घलव होईस।

 

 

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One Thought to “छत्तीसगढ़ी भाषा ल पहचान देवाबोन : दयाल दास बघेल”

  1. Nandkishore Shukla

    अड़बड़ेच्च नीक लागिस ! फेर , ए बात ह समझ मं नइ आइस के जउन सरकार ह २८ नवम्बर २००७ के छत्तीसगढ़ी लs राजभासा बनवाय के उदिम करते-करत बिधानसभा मं बचन देहे रहिसे के छत्तीसगढ़ी लs आठवाँ अनुसूची मं सामिल कराय के उदिम दिल्ली जा के करबो तउन सरकार ह आजो तक ले अपन बचन लs पूरा नइ करे हे तभो ले ओखरेच्च एक झन अउ मंतरी ह फेर कहत हे उदिम करबो ! ए कइसे उदिम कराइ हे भाई ?….एक ठी अउ बात ह समझ मं नइ आवत हे….महतारीभासा-छत्तीसगढ़ी माध्यम ले परथामिक-सिक्छा पाय के जउन बइधानिक,नियायिक अउ कानूनी अधिकार हमलs सन १९५० ले मिले हे तेला लागू करवाय बर उदिम बड़े-बड़े नामधारी छत्तीसगढ़िया मनखे मन नइ करत हें ( जउन ह जादा जरूरी हे ) अउ जउन ह अधिकार मं नइ हे अइसे आठवाँ अनुसूची ला पाय बर उदिम करबो कहत हें , काबर ? जबकि ओखर पढाई-लिखाई के नइ होनेच्च ह बहुत बड़का अडंगा हे |….नन्दकिशोर शुक्ल

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